सोमवार, 26 मार्च 2018

अपने क़दम

ठहरा है जो अपने शांत भाव से ,
शांत सरोवर कुछ *कमल* लिए ।

 अभिलाषाएँ कुछ कर पाने की ,
   कुंठाएं नही न चल पाने की ।

 सींच रहा अपने मन आँगन को ,
 अंजुली भर जल वो लिए हुए ।

  टकराएंगी मेरी लहरे मेरे साहिल से ,
 आएगा कोई हलचल का भाव लिए ।

  सहज रहा है वो बूंदे अम्बर की ,  
"निश्चल" से अपने कदम लिए ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
 रायसेन

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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