मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
..
तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..
फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
..
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....
दिए जले जो रातों को ,
खोजते अहसासों को ।
जलाकर अपनी बाती ,
टटोलते अँधियारों को ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@...
हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है ।
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तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
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फूल सा जो महकता सा रहा है ।
यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
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अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
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दिए जले जो रातों को ,
खोजते अहसासों को ।
जलाकर अपनी बाती ,
टटोलते अँधियारों को ।
...... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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