गुरुवार, 29 मार्च 2018

तारा टूटा फ़लक से

मुसाफ़िर हमसे कहा राह पाते है ।
 हम जुगनूं रातों को टिमटिमाते है  ।
   ..
तारा टुटा फ़लक से जमीं नसीब न थी ।
ख़ाक हुआ हवा में मुफ़लिसी केसी थी ।।
..
 फूल सा जो महकता सा रहा है ।
  यूँ वो रिश्ता वा-खूब सा रहा है ।
  ..
अक़्स पर अक़्स चढ़ाया उसने ।
 खुद को बा-खूब सजाया उसने ।
....
दिए जले जो रातों को ,
                  खोजते अहसासों को ।
  जलाकर अपनी बाती ,
                    टटोलते अँधियारों को ।

   ...... विवेक दुबे "निश्चल"@...


कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...