पुलकित मन हो ,
हर्षित जीवन हो ।
मानव का मानव को ,
मानव सा अर्पण हो ।
...
रंग चढ़े न यूँ दिल पे ,
दिल मिलते मुश्किल से ।
उठती लहरें सागर से ,
मिलती बूंदे साहिल से ।
..
पीता जो मीठेपन को ,
खारा वो फिर भी क्यों ।
रहता वो लहरों सँग ,
ठहरा सा वो क्यों ।
...
मथता अपने अन्तर्मन को ,
जलधि फिर भी प्यासा क्यों ।
बाँधे साहिल जिस सागर को,
साहिल से सागर टकराता क्यों ।
...
बाहर की बयार में ,
काव्य थमा प्रबाह से ।
भाव के प्रतिकार में ,
लुप्त हुआ प्रभाव से ।
...विवेक दुबे"निश्चल".@...
हर्षित जीवन हो ।
मानव का मानव को ,
मानव सा अर्पण हो ।
...
रंग चढ़े न यूँ दिल पे ,
दिल मिलते मुश्किल से ।
उठती लहरें सागर से ,
मिलती बूंदे साहिल से ।
..
पीता जो मीठेपन को ,
खारा वो फिर भी क्यों ।
रहता वो लहरों सँग ,
ठहरा सा वो क्यों ।
...
मथता अपने अन्तर्मन को ,
जलधि फिर भी प्यासा क्यों ।
बाँधे साहिल जिस सागर को,
साहिल से सागर टकराता क्यों ।
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बाहर की बयार में ,
काव्य थमा प्रबाह से ।
भाव के प्रतिकार में ,
लुप्त हुआ प्रभाव से ।
...विवेक दुबे"निश्चल".@...
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