शनिवार, 15 दिसंबर 2018

मुक्तक 670/671

670
कुछ कब होता है ।
कुछ कब होना है ।

छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।

गूढ़ नही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।
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671
हे अज्ञान ज्ञान के बासी ।
तू खोज रहा मथुरा काशी ।
तुझे श्याम मिलेंगे मन भीतर ,
तेरा मन देखे जिसकी झांकी ।
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... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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