गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

समझ न सकोगे ।

मेरे सवालों को समझ न सकोगे ।
चलोगे साथ मेरे बस तुम थकोगे ।

कभी करती नही सवाल ये जिंदगी ,
इस बे-सबाल को तुम क्या कहोगे ।

 ये फासला खड़ा है तुझमे मुझमे ,
 दूर रहकर भी तुम दूर न रहोगे ।

बेकार ही रहा सफ़र तुझ सँग ,
बात एक दिन यह तुम कहोगे ।

.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
डायरी 6(68)

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...