मजबूत इरादे कहीं रुकते नही है ।
तूफ़ां के आंगे कभी झुकते नही है ।
प्रण ले जो प्राण से करके रहेंगे ,
हिमगिर भी सामने टिकते नहीं है ।
चल पड़े जो दृण संकल्प लेकर ,
छूकर आसमां भी थकते नही है ।
टकराते है आँधियों से हँसकर ,
हारकर कभी पीछे हटते नहीं है ।
बढ़ते है चीरकर समंदर का सीना ,
उफनाती लहरों से कटते नही है ।
करते नही ईमान का सौदा कभी ,
इस झूँठी दुनियाँ से लुटते नही है ।
"निश्चल" चले सच साथ लेकर ,
दुनियाँ को झूँठ से ठगते नही है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(62)
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