सोमवार, 10 दिसंबर 2018

"निश्चल" चले सच साथ लेकर ,


मजबूत इरादे कहीं रुकते नही है ।
तूफ़ां के आंगे कभी झुकते नही है ।

प्रण ले जो प्राण से करके रहेंगे ,
हिमगिर भी सामने टिकते नहीं है ।

चल पड़े जो दृण संकल्प लेकर ,
छूकर आसमां भी थकते नही है ।

टकराते है आँधियों से हँसकर ,
हारकर कभी पीछे हटते नहीं है ।

बढ़ते है चीरकर समंदर का सीना ,
उफनाती लहरों से कटते नही है ।

करते नही ईमान का सौदा कभी ,
इस झूँठी दुनियाँ से लुटते नही है ।

 "निश्चल" चले सच साथ लेकर ,
  दुनियाँ को झूँठ से ठगते नही है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(62)

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