शनिवार, 15 दिसंबर 2018

पूर्ण ब्रह्म वो जो स्वयं है ,

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हर विचार रहा अधूरा सा ।
 हुआ नही रजः कण सम पूरा सा ।

अद्भुत विधि है बिधना की ,
रंग भिन्न विविध भरता पूरा सा ।

जोड़ नही तू कुछ अपने मन से ,
कोई कार्य रहे न उसका अधूरा सा ।

पूर्ण ब्रह्म वो जो स्वयं है ,
वो ही करता तुझको मुझको पूरा सा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(76)

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