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हर विचार रहा अधूरा सा ।
हुआ नही रजः कण सम पूरा सा ।
अद्भुत विधि है बिधना की ,
रंग भिन्न विविध भरता पूरा सा ।
जोड़ नही तू कुछ अपने मन से ,
कोई कार्य रहे न उसका अधूरा सा ।
पूर्ण ब्रह्म वो जो स्वयं है ,
वो ही करता तुझको मुझको पूरा सा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(76)
हर विचार रहा अधूरा सा ।
हुआ नही रजः कण सम पूरा सा ।
अद्भुत विधि है बिधना की ,
रंग भिन्न विविध भरता पूरा सा ।
जोड़ नही तू कुछ अपने मन से ,
कोई कार्य रहे न उसका अधूरा सा ।
पूर्ण ब्रह्म वो जो स्वयं है ,
वो ही करता तुझको मुझको पूरा सा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(76)
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