मन से मन को भरता सा।
घट पर घट सा धरता सा।
बीत रहा समय यहाँ भी ।
ये वक़्त कहाँ ठहरता सा।
मन क्यों मन को हरता सा ।
तन क्यों मन का करता सा ।
दृष्ट सदा सत्य नही रहा है ,
नीर नयन रहा पहरता सा ।
दिन दिन को कतरता सा।
रीते बर्तन से बिखरता सा ।
बीत रहे दिन खाली खाली ,
रातों का योवन उतरता सा ।
मन से मन को भरता सा।
घट पर घट सा धरता सा।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(65)
Blog post 13/12/18
घट पर घट सा धरता सा।
बीत रहा समय यहाँ भी ।
ये वक़्त कहाँ ठहरता सा।
मन क्यों मन को हरता सा ।
तन क्यों मन का करता सा ।
दृष्ट सदा सत्य नही रहा है ,
नीर नयन रहा पहरता सा ।
दिन दिन को कतरता सा।
रीते बर्तन से बिखरता सा ।
बीत रहे दिन खाली खाली ,
रातों का योवन उतरता सा ।
मन से मन को भरता सा।
घट पर घट सा धरता सा।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(65)
Blog post 13/12/18
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