सोमवार, 10 दिसंबर 2018

ये कैसी कहानी है ।


ये कैसी कहानी है ।
आंखों का पानी है ।

      ख़ुश्क रहा कोर में ,
      वो इतनी निशानी है ।

रूठते नही रुठकर ,
जो आदत पुरानी है ।

      मिलती रही हँसकर ,
      ये दुनियाँ दीवानी है ।

ठहर जरा क्षण को ,
 ये रात भी सुहानी है ।

         भोर मिले चलना ,
         रात तो बितानी है ।

 "निश्चल" सहज हर पल को,
  ये जिंदगी आनी जानी है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(61)

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