वो जमीं वो गली वो मकां ढूंढते है ।
जो हो यहीं कहीं वो जहां ढूंढते है ।
टकराती साहिल से बेख़ौफ बेझिझक ,
मचलती उस मौज की दास्तां ढूंढते है ।
लफ्ज़ ख़ामोश ख़यालों की ख़ातिर ,
उस ज़ीस्त रूह की जुबां ढूंढते हैं ।
जलते गुलिस्तां नफ़रत की आग में ,
निग़ाह आब की कोई अना ढूंढते है ।
सींचे चाहत-ए-आब से गुल को ,
गुलशन का कोई बागवां ढूंढते है ।
लूटते है दरिया साहिल को ,
मौज मैं किनारे वफ़ा ढूंढते है ।
करते रहे सफ़र सफर की खातिर ,
छूटते क़दमो के निशां ढूंढते है ।
पता मिले मंज़िल का जिस जगह पे,
चल"निश्चल" ऐसा कोई मुक़ा ढूंढते है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(58)
अना/अहमं
जो हो यहीं कहीं वो जहां ढूंढते है ।
टकराती साहिल से बेख़ौफ बेझिझक ,
मचलती उस मौज की दास्तां ढूंढते है ।
लफ्ज़ ख़ामोश ख़यालों की ख़ातिर ,
उस ज़ीस्त रूह की जुबां ढूंढते हैं ।
जलते गुलिस्तां नफ़रत की आग में ,
निग़ाह आब की कोई अना ढूंढते है ।
सींचे चाहत-ए-आब से गुल को ,
गुलशन का कोई बागवां ढूंढते है ।
लूटते है दरिया साहिल को ,
मौज मैं किनारे वफ़ा ढूंढते है ।
करते रहे सफ़र सफर की खातिर ,
छूटते क़दमो के निशां ढूंढते है ।
पता मिले मंज़िल का जिस जगह पे,
चल"निश्चल" ऐसा कोई मुक़ा ढूंढते है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(58)
अना/अहमं
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