ये परिवर्तन क्या है ?
बस दृश्य बदलते है ।
बदले हुए मोहरे भी ,
चाल नही बदलते है ।
पिटते प्यादे मोहरों से ,
बजीर नही हिलते है ।
ढाई चाल की ऐड़ लगी ,
शह से प्यादे पिटते है ।
ये परिवर्तन क्या है ?
बस दृश्य बदलते है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मत देने से मत पाता ।
तो मैं भी मत दे आता ।
छिनते सारे मत जिससे ,
फिर मैं कैसा मत दाता ।
... निश्चल..
लिखते रहे सब तक़दीर हमारी ।
कहते रहे , तुम, जागीर हमारी ।
घिस पिसते रहे दो पाटों में ,
समझे नही कोई पीर हमारी ।
बचपन आया योवन तन में ,
काम नही डिग्री की लाचारी ।
प्रौढ़ हुए युवा समय से पहले ,
रोजी की चिंता सिर पे भारी ।
सर्द खड़ा है खेतों में वो ,
लागत की वर्षा होती भारी ।
दे आया उनके दामों में धन ,
मालामाल माया के पुजारी ।
कहते है वो बड़ी शान से ,
अपने वादों में सत्ताधारी ।
बेठाओ तुम हमे कुर्सी पर ,
कर देंगे हम भर झोली भारी ।
बांट रहे है माल-ए-मुफ्त ,
सब के सब ही बारी बारी ।
काम नही पर हाथों में ,
बढ़ती है हाथों की बेकारी ।
कुछ दिन की कतरन है ,
रातो का योवन भारी ।
सब रीते से बर्तन है ,
रीत गये दिन खाली ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(62)
बस दृश्य बदलते है ।
बदले हुए मोहरे भी ,
चाल नही बदलते है ।
पिटते प्यादे मोहरों से ,
बजीर नही हिलते है ।
ढाई चाल की ऐड़ लगी ,
शह से प्यादे पिटते है ।
ये परिवर्तन क्या है ?
बस दृश्य बदलते है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
मत देने से मत पाता ।
तो मैं भी मत दे आता ।
छिनते सारे मत जिससे ,
फिर मैं कैसा मत दाता ।
... निश्चल..
लिखते रहे सब तक़दीर हमारी ।
कहते रहे , तुम, जागीर हमारी ।
घिस पिसते रहे दो पाटों में ,
समझे नही कोई पीर हमारी ।
बचपन आया योवन तन में ,
काम नही डिग्री की लाचारी ।
प्रौढ़ हुए युवा समय से पहले ,
रोजी की चिंता सिर पे भारी ।
सर्द खड़ा है खेतों में वो ,
लागत की वर्षा होती भारी ।
दे आया उनके दामों में धन ,
मालामाल माया के पुजारी ।
कहते है वो बड़ी शान से ,
अपने वादों में सत्ताधारी ।
बेठाओ तुम हमे कुर्सी पर ,
कर देंगे हम भर झोली भारी ।
बांट रहे है माल-ए-मुफ्त ,
सब के सब ही बारी बारी ।
काम नही पर हाथों में ,
बढ़ती है हाथों की बेकारी ।
कुछ दिन की कतरन है ,
रातो का योवन भारी ।
सब रीते से बर्तन है ,
रीत गये दिन खाली ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(62)
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