दिल यूँ कुछ भटके से ।
ख़्याल बीच अटके से ।
बे-पार रहे ख़यालों के ,
चाहत से ही लिपटे से ।
...
लब बार बार रुकते से ।
नज़्र निग़ाह झुकते से ।
उलझ निग़ाह चाहत में ,
खुद खुद को चुभते से ।
...
बदन सँग मन लिपटे से ।
तन बदन वो सिमटे से ।
एक पहचान की चाह में ,
दिखकर भी न दिखते से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सद्गुरु
डायरी 6(63)
ख़्याल बीच अटके से ।
बे-पार रहे ख़यालों के ,
चाहत से ही लिपटे से ।
...
लब बार बार रुकते से ।
नज़्र निग़ाह झुकते से ।
उलझ निग़ाह चाहत में ,
खुद खुद को चुभते से ।
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बदन सँग मन लिपटे से ।
तन बदन वो सिमटे से ।
एक पहचान की चाह में ,
दिखकर भी न दिखते से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सद्गुरु
डायरी 6(63)
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