कुदरत के ये सन्नाटे ,
पग मौन चुभे कांटे ।
तपती सी ये धरती ,
बस प्यास उसे बांटे ।
चलता शुष्क कंठ लिये ,
नभ नीर जहाँ बांटे ।
रहा आश्रयहीन सा वो ,
प्रश्न यही रात कहाँ काटे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
तुझे मिले कुछ ऊंचा असमां से ।
हो जुदा कुछ जो इस जहां से ।
एक पहचान हो कल अपनी ,
अपने ही छोड़े कदम निशां से ।
उठते रहे हाथ हरदम ही मेरे ,
हर दुआ में मेरे इस दुआ से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(60)
पग मौन चुभे कांटे ।
तपती सी ये धरती ,
बस प्यास उसे बांटे ।
चलता शुष्क कंठ लिये ,
नभ नीर जहाँ बांटे ।
रहा आश्रयहीन सा वो ,
प्रश्न यही रात कहाँ काटे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
तुझे मिले कुछ ऊंचा असमां से ।
हो जुदा कुछ जो इस जहां से ।
एक पहचान हो कल अपनी ,
अपने ही छोड़े कदम निशां से ।
उठते रहे हाथ हरदम ही मेरे ,
हर दुआ में मेरे इस दुआ से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(60)
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