आज कहाँ इंसान से ईमान खो गया ।
राम कहीं तो कहीं रहमान खो गया ।
करते रहे सजदे जाते रहे शिवाला ,
नजरों में मगर सम्मान खो गया ।
बदल रही है रौनके पाक रिश्तों की ,
घर घर से आज मेहमान खो गया ।
मिलते रहे गले लोग मुर्दार की तरह ,
जिंदगी से जिंदा अरमान खो गया ।
खुदगर्ज बने खुद खुदी के लिये ,
हर फ़र्ज़ अपनी पहचान खो गया ।
करते नही खुशी उस खुशी के लिये ,
"निश्चल" कहाँ वो अहसान खो गया ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(71)
राम कहीं तो कहीं रहमान खो गया ।
करते रहे सजदे जाते रहे शिवाला ,
नजरों में मगर सम्मान खो गया ।
बदल रही है रौनके पाक रिश्तों की ,
घर घर से आज मेहमान खो गया ।
मिलते रहे गले लोग मुर्दार की तरह ,
जिंदगी से जिंदा अरमान खो गया ।
खुदगर्ज बने खुद खुदी के लिये ,
हर फ़र्ज़ अपनी पहचान खो गया ।
करते नही खुशी उस खुशी के लिये ,
"निश्चल" कहाँ वो अहसान खो गया ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(71)
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