गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

कहाँ इंसान से ईमान खो गया ।

आज कहाँ इंसान से ईमान खो गया ।
राम कहीं तो कहीं रहमान खो गया ।

करते रहे सजदे जाते रहे शिवाला ,
 नजरों में मगर सम्मान खो गया ।

बदल रही है रौनके पाक रिश्तों की ,
घर घर से आज मेहमान खो गया ।

 मिलते रहे गले लोग मुर्दार की तरह ,
 जिंदगी से जिंदा अरमान खो गया ।

 खुदगर्ज बने खुद खुदी के लिये ,
 हर फ़र्ज़ अपनी पहचान खो गया ।

करते नही खुशी उस खुशी के लिये ,
"निश्चल" कहाँ वो अहसान खो गया ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 6(71)





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