गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

लब ख़ामोश खुलें राजदार मिलेंगे ।

तू ढूंढ़ जरा बहाने हज़ार मिलेंगे ।
हर दिल में नही दिलदार मिलेंगे ।

न सजा ख़्वाब ख़्याल की खातिर ,
हर ख़्याल ख़्वाब के पार मिलेंगे ।

झाँक तो सही किसी निग़ाह में जरा ,
ज़िस्म तुझे रूह से गुनहगार मिलेंगे ।

करना नही सौदे नियत के अपनी ,
आज खुदगर्ज बड़े व्यापार मिलेंगे ।

परेशां है जमीं बरसते आसमां से ,
हमदर्दी के कुछ यूं त्योहार मिलेंगे ।

हर मिलती नजर निग़ाह के पीछे ,
अमन-ओ-ईमान के खार मिलेंगे ।

जीतना न कभी इस दुनियाँ से ,
हार के बाद ही तुझे यार मिलेंगे ।

"निश्चल"छेड़ किसी ज़ज्बात को ,
 लब ख़ामोश खुलें राजदार मिलेंगे ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(73)

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