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एक मौन निमंत्रण सा ।
भावों का आमंत्रण सा ।
लिप्त रहा चित्त में चित्त ,
अन्तर्मन का अर्पण सा ।
सुध खोता खुद में खुद ,
आत्म देह समर्पण सा ।
छवि देखे तन से मन की ,
नैनो में नैनन दर्पण सा ।
निखर रहा पाषाण नदी का ,
बहता नीर बीच घर्षण सा ।
सँवर उठा वो सांझ तले ,
रश्मि तारा विकिरण सा ।
शीतलता की आस लिए ,
निहार हार दे तर्पण सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी (78)
एक मौन निमंत्रण सा ।
भावों का आमंत्रण सा ।
लिप्त रहा चित्त में चित्त ,
अन्तर्मन का अर्पण सा ।
सुध खोता खुद में खुद ,
आत्म देह समर्पण सा ।
छवि देखे तन से मन की ,
नैनो में नैनन दर्पण सा ।
निखर रहा पाषाण नदी का ,
बहता नीर बीच घर्षण सा ।
सँवर उठा वो सांझ तले ,
रश्मि तारा विकिरण सा ।
शीतलता की आस लिए ,
निहार हार दे तर्पण सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी (78)
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