हारा चलते चलते ,
राह गुमी मंजिल से मिल के ।
बीत रहा जीवन ,
जीवन को छलते छलते ।
पाँव तले जमीं न थी तब ,
पाँव जमीं से थे न मिलते ।
खोज रहा है आज जमीं वो ,
पाँव थके हैं अब चलते चलते ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
राह गुमी मंजिल से मिल के ।
बीत रहा जीवन ,
जीवन को छलते छलते ।
पाँव तले जमीं न थी तब ,
पाँव जमीं से थे न मिलते ।
खोज रहा है आज जमीं वो ,
पाँव थके हैं अब चलते चलते ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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