तपिश निग़ाह से पिघल उठे ।
निग़ाह चाँद से सितारे जल उठे ।
चाह में रोशनी की खातिर ,
साथ परछाइयों के चल उठे ।
टूटकर उजाले पहलू में रात के ,
शबनम से जमीं पे बिखर पड़े ।
हो गया वो रुख़सत मासूमियत से,
निग़ाह तले ले उसे हम चल पड़े ।
थे क़तरे निग़ाह में आबरू की खातिर ।
बे-आबरू हो क़तरे निग़ाह निकल पड़े ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@
निग़ाह चाँद से सितारे जल उठे ।
चाह में रोशनी की खातिर ,
साथ परछाइयों के चल उठे ।
टूटकर उजाले पहलू में रात के ,
शबनम से जमीं पे बिखर पड़े ।
हो गया वो रुख़सत मासूमियत से,
निग़ाह तले ले उसे हम चल पड़े ।
थे क़तरे निग़ाह में आबरू की खातिर ।
बे-आबरू हो क़तरे निग़ाह निकल पड़े ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@
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