सोमवार, 23 अप्रैल 2018

मुक्तक अंजान

टूटकर अपनी ही डाल से ।
 मुक्त हुआ वृक्ष विशाल से ।
 कर बैठा वो नादानी कैसी ,
 अंजान था अपने अंजाम से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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