आदमी को आज क्या हो रहा ।
आदमियत को आदमी खो रहा ।
क़त्ल कर आदमियत का ,
खून आदमियत का पी रहा ।
काटते रिश्ते क़िस्त क़िस्त ,
रिश्ता तार तार बेज़ार हो रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
आदमियत को आदमी खो रहा ।
क़त्ल कर आदमियत का ,
खून आदमियत का पी रहा ।
काटते रिश्ते क़िस्त क़िस्त ,
रिश्ता तार तार बेज़ार हो रहा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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