छोड़ चला मांझी कश्ती ,
लाकर सख्त किनारों पे ।
खेल रही कश्ती उसकी ,
लहरों के अहसासों पे ।
संग चलीं है कुछ यादे ,
जीवन की इन राहों पे ।
सीख रहा अब धीरे धीरे ,
चलना सख्त किनारों पे ।
शूल चुभे पग घायल से ,
टीस सजी पग चापों पे ।
दर्द बजे घुंघरू पायल से ,
जीवन की झंकारों पे ।
"निश्चल" चलता फिर भी ,
अपने सख़्त किनारों पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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