बुधवार, 25 अप्रैल 2018

छोड़ चला मांझी कश्ती


  छोड़ चला मांझी कश्ती ,
 लाकर सख्त किनारों पे ।

 खेल रही कश्ती उसकी ,
 लहरों के अहसासों पे ।

  संग चलीं है कुछ यादे  ,
 जीवन की इन राहों पे ।

 सीख रहा अब धीरे धीरे ,
 चलना सख्त किनारों पे ।
  
 शूल चुभे पग घायल से ,
 टीस सजी पग चापों पे ।

  दर्द बजे घुंघरू पायल से ,
  जीवन की झंकारों पे ।
  
  "निश्चल" चलता फिर भी  ,
   अपने सख़्त किनारों पे ।

 .... विवेक दुबे"निश्चल"@..



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