रविवार, 22 अप्रैल 2018

लड़ ज़िगर से

तू लड़ ज़िगर से ।
 तू चल फ़िकर से ।

 धर कदम उस डगर पे ,
 जहां न हों कोई निशां ,
 किसी और के कदम के ।

 अपने रास्ते खुद बना ,
 अपनी मंज़िलों को सजा ।

 धर कदम सम्हल के ,
 छोड़ता जा निशां ,
 तू हर कदम के ।

 कल कह सके दुनियाँ ,
 कोई गुजरा है इधर से ।

.... विवेक दुबे."निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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