तू लड़ ज़िगर से ।
तू चल फ़िकर से ।
धर कदम उस डगर पे ,
जहां न हों कोई निशां ,
किसी और के कदम के ।
अपने रास्ते खुद बना ,
अपनी मंज़िलों को सजा ।
धर कदम सम्हल के ,
छोड़ता जा निशां ,
तू हर कदम के ।
कल कह सके दुनियाँ ,
कोई गुजरा है इधर से ।
.... विवेक दुबे."निश्चल"@...
तू चल फ़िकर से ।
धर कदम उस डगर पे ,
जहां न हों कोई निशां ,
किसी और के कदम के ।
अपने रास्ते खुद बना ,
अपनी मंज़िलों को सजा ।
धर कदम सम्हल के ,
छोड़ता जा निशां ,
तू हर कदम के ।
कल कह सके दुनियाँ ,
कोई गुजरा है इधर से ।
.... विवेक दुबे."निश्चल"@...
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