कुछ यादों को ठंडा कर ,
कुछ वादों को गरमाना था ।
कुछ वादों की ख़ातिर ,
कुछ यादों को बिसराना था ।
साथ चले पग जिसके ,
साथ उसके चलते जाना था ।
थामा जिन हाथों को ,
उन हाथों का साथ निभाना था ।
संग चले बस उजियारो में ,
सांझ तले घर आना था ।
दुनियाँ इन गलियों में ,
कहाँ कोई ठोर ठिकाना था ।
जीवन है सुख की ख़ातिर ,
दुःख को तो बिसराना था ।
डगर कठिन दुनिया की ,
राह सुगम एक बहाना था ।
भूल चलें ठोकर राहों की ,
मंजिल पर बढ़ते जाना था ।
कुछ वादों की खातिर ,
कुछ यादों को बिसराना था ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कुछ वादों को गरमाना था ।
कुछ वादों की ख़ातिर ,
कुछ यादों को बिसराना था ।
साथ चले पग जिसके ,
साथ उसके चलते जाना था ।
थामा जिन हाथों को ,
उन हाथों का साथ निभाना था ।
संग चले बस उजियारो में ,
सांझ तले घर आना था ।
दुनियाँ इन गलियों में ,
कहाँ कोई ठोर ठिकाना था ।
जीवन है सुख की ख़ातिर ,
दुःख को तो बिसराना था ।
डगर कठिन दुनिया की ,
राह सुगम एक बहाना था ।
भूल चलें ठोकर राहों की ,
मंजिल पर बढ़ते जाना था ।
कुछ वादों की खातिर ,
कुछ यादों को बिसराना था ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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