यूँ तो कहने को दुनियाँ में, रहा नही बाँकी ।
फिर भी क्यों प्यासा है रिंद,छूट रही साक़ी ।
जज़्बातों की कच्ची पक्की राहों में,
हालातों के हाथों में हालात ही बाँकी ।
चलता जाता है ज़ीवन, ज़ीवन पथ पर ,
साँसों में जब तक, साँस रही बाँकी ।
रीत रहे हैं मन , रिश्ते नातों के अब ,
रिश्तों की डोरें , रिश्तों ने ही काटी ।
तपती धरती ,जलता अम्बर सूखी नदियाँ ,
सावन को सावन की बदली ही भरमाती ।
यूँ तो कहने को दुनियाँ में ....
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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