निगाहों को निगाहों से अदावत है ।
धड़कनो को धड़कनो से चाहत है ।
मिलाता है आज भी बड़े ख़ुशस से मुझसे ,
आज भी शायद उसकी मुझसे अदावत है ।
थाम कर ज़िगर गुजरा उसके शहर से ,
शहर की निगाहों में आज भी शरारत है ।
मैं पूछता हूँ सवाल खुद ही खुद से ,
क्या निगाहों से भी आती क़यामत है ।
"निश्चल" न कर कोई सवाल किसी से ,
यहाँ जवाब देने में हर एक को महारत है ।
. .. विवेक दुबे"निश्चल"@..
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