सोमवार, 23 अप्रैल 2018

पिता

रोता है अक्सर खामोशी से कोई ।
 पीता है हर दर्द हँस कर कोई ।
 छुपाता है आँसू निगाहें चुराकर ,
 कालेज पिता सा पाता नही कोई ।
.... 

चाहतें रातों से भी उसकी कुछ ।
हसरतें उजालों से भी उसकी कुछ ।
 रह गया खामोश ही हर दम जो ,
 दुनियाँ में एक पिता ही तो है वो ।

  पाता है कुछ जो खोकर बहुत ,
 खाता ठोकर तेरी ख़ातिर बहुत ।
  घुटता है वो दुनियाँ की भीड़ में ,
  गिनते है हम जिसे गंभीर में ।
  
 "निश्चल" रहे हर दम जो ,
  पर चलता रहे हर पल जो ।
  तोड़कर तारे फ़लक से ,
 सदा दामन में भरता जो ।

दुनियाँ में एक पिता ही है वो ।

    .... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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