रविवार, 22 अप्रैल 2018

मुझे वो लिखने देते

काश मुझे वो लिखने देता ।
 सपनो को मेरे बिकने देता ।
 संजो रहा जिन सपनो को ,
 उन सपनों को टिकने देता । 

काश मुझे वो लिखने देता ।

  आती जाती इन सांसो के ,
   वो हार मुझे पिरोने देता । 
   जीता सपनो की ख़ातिर ,
    कलम तले सपना होता ।

 लिखता सपने पल पल के,
 हर सपना मेरा अपना होता ।
   लेते अक्षर रूप सुहाना ,
  मेरा स्वप्न खिलौना होता ।
   
  काश मुझे वो लिखने देता ।
  
  हार कहीं है जीत कहीं  ,
  शब्दों में सहज रहा होता ।
   सीकर शब्दों से शब्दों को,
    भाव सुखद सलोना होता ।

  काश मुझे वो लिखने देता ।

  ..... विवेक दुबे"निश्चल"@....


   
  

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