उधड़ रहे कुछ ख्याल ,
तुरप रहा हूँ ।
यादों को मैं अपनी ,
खुरच रहा हूँ ।
सिलता हूँ दामन को,
अपने बार बार ।
वक़्त की मार से जो ,
होता तार तार ।
एक आस की खातिर ,
अहसास हैं हजार ।
न जीत की खुशी ,
न हार में कोई हार ।
चलता ही रहा हूँ ,
न कोई प्रतिकार ।
जीवन चला है ,
जीवन के पार ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
तुरप रहा हूँ ।
यादों को मैं अपनी ,
खुरच रहा हूँ ।
सिलता हूँ दामन को,
अपने बार बार ।
वक़्त की मार से जो ,
होता तार तार ।
एक आस की खातिर ,
अहसास हैं हजार ।
न जीत की खुशी ,
न हार में कोई हार ।
चलता ही रहा हूँ ,
न कोई प्रतिकार ।
जीवन चला है ,
जीवन के पार ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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