रिंद चला मय की ख़ातिर ,
साक़ी के मयखाने में ।
हार चला वो ज़ीवन को ,
ज़ीवन पा जाने में ।
रूठे है तारे क्यों ,
चँदा के छा जाने में।
भोर तले शबनम जलती,
सूरज के आ जाने में ।
उम्र थकी चलते चलते ,
यौवन के ढल जाने में ।
उम्र निशां मिलते ,
चेहरों के खिल जाने में ।
जीव चला ज़ीवन की खातिर,
ज़ीवन को पा जाने में ।
रिंद चला मय की ख़ातिर ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
साक़ी के मयखाने में ।
हार चला वो ज़ीवन को ,
ज़ीवन पा जाने में ।
रूठे है तारे क्यों ,
चँदा के छा जाने में।
भोर तले शबनम जलती,
सूरज के आ जाने में ।
उम्र थकी चलते चलते ,
यौवन के ढल जाने में ।
उम्र निशां मिलते ,
चेहरों के खिल जाने में ।
जीव चला ज़ीवन की खातिर,
ज़ीवन को पा जाने में ।
रिंद चला मय की ख़ातिर ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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