चमक नहीं इन तलवारो में भी ,
इन तलवारों की भी धार पुरानी है ।
फड़क रहीं यह जिन म्यानों में ,
वो म्यान पुरानी है ।
सौंपी थी सरहद जिनको ,
शेर जानकर ,उनकी भी दहाड़ पुरानी है ।
होते हर दिन हमले घात लगाकर ,
इन नज़रों की भी निग़ाह पुरानी है ।
कब तक यूँ शीश कटेंगे लालों के ,
कब तक सिंदूर पुछेंगे बहनों के भालों के ,
इनकी भी आदत बही पुरानी है।
न सुनने की इनने भी ठानी है ।
कह दो बस एक बार वीरों से ,
कर लो तुम अपने मन की,
प्यास बुझाओ शमशीरों से ।
वीरों ने तो बस, आर पार की ठानी है ।
चमक नहीं इन तलवारो में भी ...
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
इन तलवारों की भी धार पुरानी है ।
फड़क रहीं यह जिन म्यानों में ,
वो म्यान पुरानी है ।
सौंपी थी सरहद जिनको ,
शेर जानकर ,उनकी भी दहाड़ पुरानी है ।
होते हर दिन हमले घात लगाकर ,
इन नज़रों की भी निग़ाह पुरानी है ।
कब तक यूँ शीश कटेंगे लालों के ,
कब तक सिंदूर पुछेंगे बहनों के भालों के ,
इनकी भी आदत बही पुरानी है।
न सुनने की इनने भी ठानी है ।
कह दो बस एक बार वीरों से ,
कर लो तुम अपने मन की,
प्यास बुझाओ शमशीरों से ।
वीरों ने तो बस, आर पार की ठानी है ।
चमक नहीं इन तलवारो में भी ...
..... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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