प्रेत जगा एक अभिलाषाओं का ।
कुछ मृत आस पिपासाओं का ।
आ कर बैठा है जो कांधों पर ,
प्रश्न पूछता आधे छूटे वादों का ।
ले मौन , चला मंज़िल अपनी ,
हृदय मन फ़ौलाद इरादों सा ।
मार दिए जो सपने उसने अपने ,
ठोकर कदमों से ख़ाक उड़ाता सा ।
...
आशाएँ ले अभिलाषाओं सँग जगा सा।
लेकर ज़िंदगी को "निश्चल" वो भागा सा ।
ठहरी नही कभी जो "निश्चल" रहकर ,
जीवन को जीवन से वो देता काँधा सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
आशाएँ अभिलाषाएँ ही जागतीं हैं ।
यह ज़िंदगी तो "निश्चल" भागती है ।
ठहरती नही कभी निश्चल रहकर ,
ज़िंदगी को ज़िंदगी कब बांधती है ।
..
कुछ मृत आस पिपासाओं का ।
आ कर बैठा है जो कांधों पर ,
प्रश्न पूछता आधे छूटे वादों का ।
ले मौन , चला मंज़िल अपनी ,
हृदय मन फ़ौलाद इरादों सा ।
मार दिए जो सपने उसने अपने ,
ठोकर कदमों से ख़ाक उड़ाता सा ।
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आशाएँ ले अभिलाषाओं सँग जगा सा।
लेकर ज़िंदगी को "निश्चल" वो भागा सा ।
ठहरी नही कभी जो "निश्चल" रहकर ,
जीवन को जीवन से वो देता काँधा सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
आशाएँ अभिलाषाएँ ही जागतीं हैं ।
यह ज़िंदगी तो "निश्चल" भागती है ।
ठहरती नही कभी निश्चल रहकर ,
ज़िंदगी को ज़िंदगी कब बांधती है ।
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