तिरंगा भी अब रोता होगा ।
अपने लाल जब खोता होगा ।
लिपटकर फ़क्र नही होता होगा ।
मातम में ग़मज़दा होता होगा ।
यूँ देकर बेवजह कुर्बानियाँ ,
अपने ही लाडले लालों की ,
तिरंगे का खूँ खोलता होगा ।
करते हैं जो बातें मेरी आन की ,
क्या खूँ उनका स्याह हुआ होगा ।
बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@.....
अपने लाल जब खोता होगा ।
लिपटकर फ़क्र नही होता होगा ।
मातम में ग़मज़दा होता होगा ।
यूँ देकर बेवजह कुर्बानियाँ ,
अपने ही लाडले लालों की ,
तिरंगे का खूँ खोलता होगा ।
करते हैं जो बातें मेरी आन की ,
क्या खूँ उनका स्याह हुआ होगा ।
बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
बस तिरंगा यही सोचता होगा ।
....विवेक दुबे "निश्चल"@.....
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