बुधवार, 7 मार्च 2018

कलम काव्य रचती

 चित्कार उठी वो अन्तर्मन से ।
  दृष्टि सृष्टी के कण कण पर।
 सम्मोहित कलम काव्य रचती ,
 चलती मोहित कागज़ पथ पर ।

  सिंचित नभ जल सम वो  ,
  सृजित प्राण क्षिति नीचे ।
 शुष्क नही मरु भूमि वो ,
 तपता ''निश्चल" जल नीचे ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@.......
क्षिति - धरा




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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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