सोमवार, 5 मार्च 2018

सैनिक छाती ही खाती क्यों गोली

देश पर मिटना मेरा काम न था।
 यूँ शहीदों में मेरा नाम न था ।
 मैं जीता खुदगर्ज़ी के आलम में,
 मैं शहीदों सा बदनाम न था । 
     .... विवेक दुबे"निश्चल"@...

सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
 सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
 कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
 सैनिक की छाती गोली खाती ।

 .... विवेक दुबे "निश्चल"@ .....

सिंदूर उजड़ते , सूनी राखी ।
 सूनी कोख , छाया की लाचारी ।
 कुटिल नीतियाँ सत्ता की ।
 सैनिक की छाती गोली खाती ।

 .... विवेक दुबे "निश्चल"@ .....

 वो सुहाग चूड़ीयाँ नई नवेली थीं।
 अलबेले साजन की सहेली थीं ।
  बिखर गईं पल भर में सीमा पर ,
  सीमा पे साजन ने खेली होली थी।

  कर रक्षा भारत माँ के सुहाग की ,
  एक सुहागन बिधवा हो ली थी।
  कोटि कोटि चूड़ियों की खातिर,
  अपनी चूड़ियाँ उसने खो दीं थीं ।

   .... विवेक दुबे "निश्चल" © ....

 मरते रहे लाल भारत के भाल पे ।
 बस एक मातृ भूमि के सवाल पे ।
 भला क्या जाने वो आन देश की ,
 चलते रहे हैं जो थैले सम्हाल के ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@......

  

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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