सुलग रहीं हैं आज हर और चिंगारी ।
कहीं भाषा कहीं मज़हब है भारी ।
कहीं हो न जाएँ चिंगारियाँ प्रचण्ड ।
कहीं फिर हो न जाए खण्ड खण्ड ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
कहीं भाषा कहीं मज़हब है भारी ।
कहीं हो न जाएँ चिंगारियाँ प्रचण्ड ।
कहीं फिर हो न जाए खण्ड खण्ड ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"@..
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