जहाँ देखो वहाँ जंग छिड़ी है ।
तलवारें तलवारों से भिड़ी हैं ।
कलमें भी आ मैदान गढ़ि हैं ।
शब्दों की तीखी धार चढ़ी हैं।
कलम कलम ने घात गढ़ि है ।
शब्द शब्द की काट मची है ।
शमशीरों के आघातों से,
शब्दों की प्रतिघात बड़ी है ।
जहाँ देखो वहाँ....
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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