सीमा पर चलतीं हर दिन गोली ,
क्या खेलें हम एक दिन होली ।
रंग चढ़े उन पे वतन परस्ती के,
वो खेलें अपने लहू सँग होली ।
डूब रहे हम अपनी मस्ती में,
भूल रहे जो सीने खाते गोली ।
सीमा पर अनचाही चलती गोली ।
खेल रहे वीर राष्ट्र प्रेम की होली ।
क्या खेलें हम होली ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
क्या खेलें हम एक दिन होली ।
रंग चढ़े उन पे वतन परस्ती के,
वो खेलें अपने लहू सँग होली ।
डूब रहे हम अपनी मस्ती में,
भूल रहे जो सीने खाते गोली ।
सीमा पर अनचाही चलती गोली ।
खेल रहे वीर राष्ट्र प्रेम की होली ।
क्या खेलें हम होली ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@..
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