सोमवार, 5 मार्च 2018

वो पास्ता कद

वो पस्ता कद हृदय बड़ा विशाल ।
 वो माता का लालबहादुर लाल।
 65 में जा पहुँचा जो लाहौर सियकोट,
 बस कुछ दूर ही थी रही कराँची ।

      जय जवान जय किसान के नारे ने ,
      दुश्मन की थी तब चूल हिला दी।
       पलटा दृश्य विश्व पटल पर जिसने।
      जाने क्यों वो याद आज भुला दी ।
    ....... विवेक दुबे"निश्चल"@....


ताशकंद भारत का लाल जो गया ।
लौट न सका वापस वो बही सो गया ।
जीत कर भी जीत का अफ़सोस रह गया ।
काश जीत के हालात क़ायम होते।
आज हालत-ऐ-हिन्द कुछ और होते। आज यूँ बेबजह गोलियां न चल रही होती ।
जो चलती गोलियां तो उनकी कोई बजह होती।

   ....विवेक दुबे "विवेक"©....

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