देखो उस माटी को ।
फूलों की उस घाँटी को ।
देवो की उस थाती को ।
खिलते थे गुलशन कदम कदम ।
अब चलतीं गोली दन दन दन ।
उजड़ी बगिया सूने आँगन ।
बेघर हुए सारे जन । (ब्रम्हाण )
आँखे मूंदे सारे दल ।
काठ की हांड़ी दाल चढ़ी ।
स्वार्थ की रोटी खूब पकी ।
अब न जागे ,
फिर कब जागोगे ।
हे गण जन का हक़ ,
तुम न दिलवा पाओगे ?
आँखों पर पट्टी बाँधे ,
मूक खड़े रह जाओगे ।
देखो देखो कुछ तो देखो ।
बेघर कश्मीरी जन को ,
अब तुम वापस घर भेजो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
फूलों की उस घाँटी को ।
देवो की उस थाती को ।
खिलते थे गुलशन कदम कदम ।
अब चलतीं गोली दन दन दन ।
उजड़ी बगिया सूने आँगन ।
बेघर हुए सारे जन । (ब्रम्हाण )
आँखे मूंदे सारे दल ।
काठ की हांड़ी दाल चढ़ी ।
स्वार्थ की रोटी खूब पकी ।
अब न जागे ,
फिर कब जागोगे ।
हे गण जन का हक़ ,
तुम न दिलवा पाओगे ?
आँखों पर पट्टी बाँधे ,
मूक खड़े रह जाओगे ।
देखो देखो कुछ तो देखो ।
बेघर कश्मीरी जन को ,
अब तुम वापस घर भेजो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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