दृग जल नैनन से ,
ठहरा अधरन पे ।
व्यकुल नैनन से ,
मचला चितवन में ।
दग्ध हृदय आधीर शब्द,
व्यथा बसी उस मन में ।
बिरह व्याकुल वो ,
रोक रही मन मन से ।
सिंगर खड़ी द्वारे ,
मिलने आतुर प्रियतम से ।
आएंगे इस फ़ागुन में ,
मिलने रंग अपने रंग से ।
रच जाऊँ उसके रंग में ,
भाव लिए सोचे चितवन में ।
दृग जल नैनन से,
ठहरा अधरन पे ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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