445
जिंदगी सवालों सी ।
उलझी जवाबों सी ।
डूबकर किनारों पे ,
छूटते किनारों सी ।
...446
उतरकर अपने ही आप में ।
करता खुद से ही बात मैं ।
जीत न सका जज़्बात को ,
हारता दिल के ही हाथ मैं ।
....
447
सवाल एक यही अच्छा था ।
वो बे-सवाल ही सच्चा था ।
चलते रहे ख़ामोश राहों पे ,
वो राहगर निग़ाह सच्चा था
...
448
छुपी हुई दिल में एक निशानी है ।
बैसे अपनी तो पहचान पुरानी है ।
मिलती है राहें कहीं चौराहों पर ,
पहचानों की भी यही कहानी है ।
....
449
ना हर्ष रहे ना संताप रहे ।
बस मैं नही आप रहे ।
मोह नही नियति बंधन से ,
जीवन का इतना माप रहे ।
...
450
सरल सदा ही तरल होता है।
बहता सा ही कल होता है।
मिल जाता जो सागर में ,
सफ़ल वहाँ सफर होता है।
....
451
मन में एक आस है ।
हृदय भरा विश्वास है ।
दो गज़ भले जमीं मेरी ,
सर पर पूरा आकाश है ।
..
452
शब्द शब्द अर्थ सजी है कविता ।
अपरिचित सी परिचित है कविता ।
गूढ़ भाव मौन गढ़ चलती है ।
"निश्चल" सचल चित्त है कविता ।
..
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
जिंदगी सवालों सी ।
उलझी जवाबों सी ।
डूबकर किनारों पे ,
छूटते किनारों सी ।
...446
उतरकर अपने ही आप में ।
करता खुद से ही बात मैं ।
जीत न सका जज़्बात को ,
हारता दिल के ही हाथ मैं ।
....
447
सवाल एक यही अच्छा था ।
वो बे-सवाल ही सच्चा था ।
चलते रहे ख़ामोश राहों पे ,
वो राहगर निग़ाह सच्चा था
...
448
छुपी हुई दिल में एक निशानी है ।
बैसे अपनी तो पहचान पुरानी है ।
मिलती है राहें कहीं चौराहों पर ,
पहचानों की भी यही कहानी है ।
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449
ना हर्ष रहे ना संताप रहे ।
बस मैं नही आप रहे ।
मोह नही नियति बंधन से ,
जीवन का इतना माप रहे ।
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450
सरल सदा ही तरल होता है।
बहता सा ही कल होता है।
मिल जाता जो सागर में ,
सफ़ल वहाँ सफर होता है।
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451
मन में एक आस है ।
हृदय भरा विश्वास है ।
दो गज़ भले जमीं मेरी ,
सर पर पूरा आकाश है ।
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452
शब्द शब्द अर्थ सजी है कविता ।
अपरिचित सी परिचित है कविता ।
गूढ़ भाव मौन गढ़ चलती है ।
"निश्चल" सचल चित्त है कविता ।
..
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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