शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक 445

445
जिंदगी सवालों सी ।
 उलझी जवाबों सी ।
  डूबकर किनारों पे ,
 छूटते किनारों सी ।
...446
उतरकर अपने ही आप में ।
 करता खुद से ही बात मैं ।
 जीत न सका जज़्बात को ,
 हारता दिल के ही हाथ मैं ।
.... 
447
सवाल एक यही अच्छा था ।
वो बे-सवाल ही सच्चा था ।
 चलते रहे ख़ामोश राहों पे ,
वो राहगर निग़ाह सच्चा था
...
448
छुपी हुई दिल में एक निशानी है ।
बैसे अपनी तो पहचान पुरानी है ।
मिलती है राहें कहीं चौराहों पर , 
 पहचानों की भी यही कहानी है ।
....
449
ना हर्ष रहे ना संताप रहे ।
बस मैं नही आप रहे ।
 मोह नही नियति बंधन से ,
 जीवन का इतना माप रहे ।
...
450
सरल सदा ही तरल होता है।
बहता सा ही कल होता है।
मिल जाता जो सागर में ,
 सफ़ल वहाँ सफर होता है।
....

451
  मन में एक आस है ।
 हृदय भरा विश्वास है ।
 दो गज़ भले जमीं मेरी ,
 सर पर पूरा आकाश है ।
..
452
शब्द शब्द अर्थ सजी है कविता ।
अपरिचित सी परिचित है कविता ।
गूढ़ भाव मौन गढ़ चलती है ।
"निश्चल" सचल चित्त है कविता ।
..
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...