बुधवार, 18 जुलाई 2018

एक विस्तृत नभ सम

एक विस्तृत नभ सम ।
 भू धरा धरित रजः सम ।
         आश्रयहीन अभिलाषाएं ।
        नभ विचरित पँख फैलाएं ।
निःश्वास प्राण सांसों में ।
लम्पित लता बांसों में ।
         बस आशाएँ अभिलाषाएं ।
         ओर छोर न पा पाएं ।
   मन निर्बाध विचारों में ।
  जीवन के सहज किनारों में ।
   
          एक विस्तृत नभ सम ।
          भू धरा धरित रजः सम ।

   जब शशि गगन में आए ।
    निशि तरुणी रूप सजाए ।
          विधु भरता बाहों में ।
          विखरें दृग कण आहों में ।     
   प्रफुल्लित धरा शिराएं ।
    तृण कण जीवन पाएं ।
            नव चेतन प्राणों में ।
            चलता दिनकर राहों में ।

    एक विस्तृत नभ सम ।
    भू धरा धरित रजः सम ।
            
  .. विवेक दुबे"निश्चल"@...

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