ना ही कोई सुनता है ।
ना ही कोई पढ़ता है ।
फिर भी यह मन ,
शब्द भाव गढ़ता है ।
जीता प्रेम पिपासा में ,
आलिंगन को बढता है ।
छूकर शब्दों से शब्दों को ,
प्रणय निवेदन सा करता है ।
पहचानी राहों पर अंजानो सा ,
"निश्चल" बस चल पड़ता है ।
नही कोई सुनता है ।
ना ही कोई ......
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
Blog post 21/7/18
ना ही कोई पढ़ता है ।
फिर भी यह मन ,
शब्द भाव गढ़ता है ।
जीता प्रेम पिपासा में ,
आलिंगन को बढता है ।
छूकर शब्दों से शब्दों को ,
प्रणय निवेदन सा करता है ।
पहचानी राहों पर अंजानो सा ,
"निश्चल" बस चल पड़ता है ।
नही कोई सुनता है ।
ना ही कोई ......
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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