शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक 453

453
पत्थर जब पिघलते है ।
 लावा बन कर चलते है ।
थर्राती है तब धरती भी,
 ज्वालामुखी निकलते है ।
 ...
454
फौलाद बना जिस पत्थर से ,
वो पत्थर भी पिघला होगा ।
 उसकी ही जलती सांसो में ,
  "निश्चल" फौलाद मिला होगा ।
... 
455
अपनी परवाह छोड़ जरा । 
लापरवाह हो के देख जरा ।
 खुल जाएंगे सारे बंधन ,
 उसमे खुद को देख जरा ।
.... 
456
कदम कदम कुछ खोता है ।
सपनो का कैसा धोखा है ।
रिक्त नही पर मैं रीत रहा ,
 धरा मन मन कुछ वोता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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