453
पत्थर जब पिघलते है ।
लावा बन कर चलते है ।
थर्राती है तब धरती भी,
ज्वालामुखी निकलते है ।
...
454
फौलाद बना जिस पत्थर से ,
वो पत्थर भी पिघला होगा ।
उसकी ही जलती सांसो में ,
"निश्चल" फौलाद मिला होगा ।
...
455
अपनी परवाह छोड़ जरा ।
लापरवाह हो के देख जरा ।
खुल जाएंगे सारे बंधन ,
उसमे खुद को देख जरा ।
....
456
कदम कदम कुछ खोता है ।
सपनो का कैसा धोखा है ।
रिक्त नही पर मैं रीत रहा ,
धरा मन मन कुछ वोता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
पत्थर जब पिघलते है ।
लावा बन कर चलते है ।
थर्राती है तब धरती भी,
ज्वालामुखी निकलते है ।
...
454
फौलाद बना जिस पत्थर से ,
वो पत्थर भी पिघला होगा ।
उसकी ही जलती सांसो में ,
"निश्चल" फौलाद मिला होगा ।
...
455
अपनी परवाह छोड़ जरा ।
लापरवाह हो के देख जरा ।
खुल जाएंगे सारे बंधन ,
उसमे खुद को देख जरा ।
....
456
कदम कदम कुछ खोता है ।
सपनो का कैसा धोखा है ।
रिक्त नही पर मैं रीत रहा ,
धरा मन मन कुछ वोता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें