बुधवार, 18 जुलाई 2018

दिन बड़ा फुरसत का

दिन बना फुरसत का ।
वक़्त बड़ा गुरवत का ।

 बे-रूखी है ये कैसी   ,
 तंज मिला हसरत का ।

 छूटकर अपने किनारों से ,
 सफर रहा शोहरत का ।

 हार कर हालातों से ,
 किस्सा बना किस्मत का ।

  साथ नही वक़्त उसके ,
 मोहताज़ रहा मोहलत का ।

"निश्चल" कायम खुद्दारी से ,
  यही खज़ाना दौलत का ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...