विषय तुलातुम
मुक्त छंद रचना
नभ गरजे मेघ महा भयंकर ।
ज्यों तांडव करते अभ्यंकर ।
नाद तलातुम मची धरा पर ,
कम्पित चंद्र विस्मृत दिनकर ।
उड़ते तृण पवन संग जैसे ।
डोल रही अविनि कुछ ऐसे ,
थल ही जल जल ही थल है ,
समा रहे आपस मे कुछ ऐसे ।
ब्रम्हांड हिला प्रलय मचा है ।
महादेव ने रौद्र रूप रखा है ।
महादेव आज महा तांडव करते ,
महादेव ने संहारक रूप रखा है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मुक्त छंद रचना
नभ गरजे मेघ महा भयंकर ।
ज्यों तांडव करते अभ्यंकर ।
नाद तलातुम मची धरा पर ,
कम्पित चंद्र विस्मृत दिनकर ।
उड़ते तृण पवन संग जैसे ।
डोल रही अविनि कुछ ऐसे ,
थल ही जल जल ही थल है ,
समा रहे आपस मे कुछ ऐसे ।
ब्रम्हांड हिला प्रलय मचा है ।
महादेव ने रौद्र रूप रखा है ।
महादेव आज महा तांडव करते ,
महादेव ने संहारक रूप रखा है ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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