एक चाहत ही मचलती रही ।
जिंदगी भी रंग बदलती रही ।
झुकाकर वो निग़ाह राह से ,
हर बार ही निकलती रही ।
खुश गवारीयों के मौसम में ,
शबनम फूल फिसलती रही ।
आकर जमीं के दमन में ,
कदमों तले कुचलती रही ।
न चली साँझ साथ रात के ,
किस्मत क्युं खिसलती रही ।
खो गया सितार वो भोर का ,
भोर तले रात दहलती रही ।
"निश्चल" के हर अंदाज़ से ,
निग़ाह क्युं मचलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
Blog post 20/7/18
जिंदगी भी रंग बदलती रही ।
झुकाकर वो निग़ाह राह से ,
हर बार ही निकलती रही ।
खुश गवारीयों के मौसम में ,
शबनम फूल फिसलती रही ।
आकर जमीं के दमन में ,
कदमों तले कुचलती रही ।
न चली साँझ साथ रात के ,
किस्मत क्युं खिसलती रही ।
खो गया सितार वो भोर का ,
भोर तले रात दहलती रही ।
"निश्चल" के हर अंदाज़ से ,
निग़ाह क्युं मचलती रही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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