तुझ सक्षम को स्वयं संजोना होगा ।
तब सा-आकार स्वप्न सलोना होगा ।
इस अंबर का भी एक कोना होगा ।
कुंठित अभिलाषाएं धूमिल आशाएं ,
अपने ही साहस जल से धोना होगा ।
इस अंबर का भी एक कोना होगा ।
रचकर निज प्रण प्राण सांसों में ,
निज को निज में ही खोना होगा ।
इस अंबर का भी एक कोना होगा ।
रीत रहे न प्रीत रहे कोई मन में ,
मन को मन का ही होना होगा ।
इस अंबर का भी एक कोना होगा ।
स्व को स्वयं से तजकर तुझको ,
निज स्वयं तुझे बिलोना होगा ।
इस अंबर का भी एक कोना होगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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