मेरी डायरी
मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।
करते थे बातें वो मुझसे अपनी ,
आते थे अक्सर जो मुझसे मिलने ।
बीत गया जो बीत रहा जो ,
कल आएगा जो उसको सिलने ।
सहलाते बड़े जतन से वो मुझको ,
आते थे जब वो मुझसे मिलने ।
रचकर बसकर मेरी आँखों में ,
लगते स्वप्न सलोने से वो खिलने ।
वक़्त बड़ा ही निरिह रहा है ,
नही किसी का मीत रहा है ।
निगल लिया उसने भी उनको ,
बन्द किए थीं जिसको उनकी जिल्दें ।
मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।
करते थे बातें वो मुझसे अपनी ,
आते थे अक्सर जो मुझसे मिलने ।
बीत गया जो बीत रहा जो ,
कल आएगा जो उसको सिलने ।
सहलाते बड़े जतन से वो मुझको ,
आते थे जब वो मुझसे मिलने ।
रचकर बसकर मेरी आँखों में ,
लगते स्वप्न सलोने से वो खिलने ।
वक़्त बड़ा ही निरिह रहा है ,
नही किसी का मीत रहा है ।
निगल लिया उसने भी उनको ,
बन्द किए थीं जिसको उनकी जिल्दें ।
मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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