शनिवार, 21 जुलाई 2018

मेरी डायरी

मेरी डायरी

मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े  पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।

करते थे बातें वो मुझसे अपनी ,
आते थे अक्सर जो मुझसे मिलने ।

 बीत गया जो बीत रहा जो ,
 कल आएगा जो उसको सिलने ।

 सहलाते बड़े जतन से वो मुझको ,
 आते थे जब वो मुझसे मिलने ।

 रचकर बसकर मेरी आँखों में ,
 लगते स्वप्न सलोने से वो खिलने ।

 वक़्त बड़ा ही निरिह रहा है ,
 नही किसी का मीत रहा है ।

 निगल लिया उसने भी उनको ,
 बन्द किए थीं जिसको उनकी जिल्दें ।

मेरी किताबों के कुछ उखड़े उखड़े पन्ने।
लफ्ज़ लिखे थे जिन कर कुछ नन्हे नन्हे ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@.....

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