सुख की छांया सौंप सदा ही,
जेठ धूप से तपे पिता ।
कंटक पथ सी राहों में ,
नर्म बिछौने से बिछे पिता ।
जी कर अपने ही संतापों में ,
धैर्य सदा ही देते ।
टकराकर हर संकट से ,
संकट सारे हर लेते ।
मेरे एक सुख की ख़ातिर,
संघर्षों से सजे पिता ।
बांट प्रसाद में सुख अपने,
सारे सुख तजे पिता ।
सपने जब वो कुछ गढ़ लेते,
सजल नयन भर लेते ,
मेरे एक सपने की ख़ातिर ,
अपने सपने तज देते ।
सींच रहे अमृत रस ,
कंठ हलाहल थाम पिता ।
सुख की छांया सौंप सदा ही ,
जेठ धूप से तपे पिता ।
चाह नही कोई फिर भी,
वो ना चाहें कैसे ,
जीते जिसकी ख़ातिर वो,
पा जाए वो कुछ कैसे ।
बस एक सोच यही है,
लगन यही है ।
जीवन का उनके ,
एक मुक़ाम यही है ।
रहकर "निश्चल" चलते ,
राहों पर गतिमान पिता ।
तोड़ तोड़कर तारे अम्बर से ,
झोली मेरी भरें पिता ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
जेठ धूप से तपे पिता ।
कंटक पथ सी राहों में ,
नर्म बिछौने से बिछे पिता ।
जी कर अपने ही संतापों में ,
धैर्य सदा ही देते ।
टकराकर हर संकट से ,
संकट सारे हर लेते ।
मेरे एक सुख की ख़ातिर,
संघर्षों से सजे पिता ।
बांट प्रसाद में सुख अपने,
सारे सुख तजे पिता ।
सपने जब वो कुछ गढ़ लेते,
सजल नयन भर लेते ,
मेरे एक सपने की ख़ातिर ,
अपने सपने तज देते ।
सींच रहे अमृत रस ,
कंठ हलाहल थाम पिता ।
सुख की छांया सौंप सदा ही ,
जेठ धूप से तपे पिता ।
चाह नही कोई फिर भी,
वो ना चाहें कैसे ,
जीते जिसकी ख़ातिर वो,
पा जाए वो कुछ कैसे ।
बस एक सोच यही है,
लगन यही है ।
जीवन का उनके ,
एक मुक़ाम यही है ।
रहकर "निश्चल" चलते ,
राहों पर गतिमान पिता ।
तोड़ तोड़कर तारे अम्बर से ,
झोली मेरी भरें पिता ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें